China Deflation: चीन पर मंडराया नया खतरा, महंगाई में आई गिरावट तो अब 'डिफ्लेशन' का झटका, क्या है ये मुसीबत
China Deflation: महंगाई में गिरावट के बाद चीन की इकोनॉमी अब अपस्फीति यानी डिफ्लेशन की मुसीबत में फंस चुकी है.
(Source: Reuters)
(Source: Reuters)
China Deflation: चीन में दो साल से अधिक समय में पहली बार जुलाई में उपभोक्ता कीमतों में गिरावट देखने को मिली है, जिसके चलते चीन की इकोनॉमी गिरकर अपस्फीति (Deflation) तक पहुंच गई है. बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इंफ्लेशन के मापक के तौर पर ऑफिशियल कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स पिछले महीने यानि जुलाई में एक साल पहले की तुलना में 0.30 फीसदी तक गिर गया. विश्लेषकों ने बताया कि इससे सरकार पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी में डिमांड को फिर से जिंदा करने का दबाव बढ़ गया है. रिपोर्ट में बताया कि यह कमजोर एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट डेटा का नतीजा है. जिसके चलते कोरोना महामारी के बाद चीन की रिकवरी प्रभावित हुई है.
चीन में बढ़ी बेरोजगारी
चीन इस समय बढ़ते लोकल सरकारी कर्ज और हाउसिंग मार्केट की चुनौतियों से निपट रहा है. युवाओं में बेरोजगारी की समस्या चरम पर है. इसके ऊपर भी करीब से नजर रखी जा रही है, क्योंकि इस साल रिकॉर्ड 11.58 मिलियन कॉलेज ग्रेजुएट जॉब मार्केट में एंट्री लेने वाले हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कीमतों के गिरने से चीन के लिए अपना कर्ज कम करना मुश्किल हो रहा है और इससे विकास की धीमी दर जैसी चुनौतियां पैदा हुई हैं.
निवेश फर्म ईएफजी एसेट मैनेजमेंट के डैनियल मरे कहते हैं कि मुद्रास्फीति को कम करने के लिए कोई सीक्रेट उपाय नहीं है. उन्होंने कहा कि देश को आसान मौद्रिक नीति के साथ-साथ अधिक सरकारी खर्च और कम टैक्स का रास्ता अपनाने का सुझाव दिया.
क्यों मुसीबत में है चीन
TRENDING NOW
FD पर Tax नहीं लगने देते हैं ये 2 फॉर्म! निवेश किया है तो समझ लें इनको कब और कैसे करते हैं इस्तेमाल
8th Pay Commission: केंद्रीय कर्मचारियों के लिए ताजा अपडेट, खुद सरकार की तरफ से आया ये पैगाम! जानिए क्या मिला इशारा
ज्यादातर विकसित देशों में महामारी समाप्त होने के बाद उपभोक्ता खर्च (consumer spending) में उछाल देखा गया. कोरोना महामारी से जुड़े प्रतिबंध हटने के बाद लोगों ने जो पैसे बचाकर रखे थे, उन्हें खर्च करने की इच्छा बढ़ गई. लेकिन बिजनेस को इन मांगों को पूरा करने के लिए संघर्ष का सामना करना पड़ा. जिन चीजों की सप्लाई सीमित थी उनकी मांग बढ़ गई और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण एनर्जी की कीमत भी बढ़ गई. इन सभी के चलते मिलकर कीमतों में वृद्धि हुई.
अपस्फीति से घिरा चीन
लेकिन चीन में ऐसा नहीं हुआ, जहां इकोनॉमी दुनिया के सबसे कड़े कोरोना वायरस नियमों से उभरने के बाद कीमतें नहीं बढ़ीं. उपभोक्ता कीमतें आखिरी बार फरवरी 2021 में गिरी थीं. चीन कई महीनों से अपस्फीति के खतरे में है, कमजोर मांग के कारण इस साल की शुरुआत में फ्लैटलाइनिंग हुई. चीन के निर्माताओं द्वारा ली जाने वाली कीमतें - जिन्हें फ़ैक्टरी गेट कीमतें कहा जाता है - भी गिर रही हैं.
हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सहायक प्रोफेसर एलिसिया गार्सिया-हेरेरो ने कहा कि यह चिंताजनक है क्योंकि इससे पता चलता है कि चीन में मांग खराब है जबकि बाकी दुनिया जाग रही है, खासकर पश्चिम देशों में. उन्होंने कहा कि अपस्फीति से चीन को मदद नहीं मिलेगी. कर्ज और अधिक भारी हो जाएगा. यह सब अच्छी खबर नहीं है.
09:07 PM IST